श्री कृष्णचन्द्र भगवान की स्वाभाविक कृपा से प्रथम बार पुण्य सलिला भगवती भागीरथी के तट पर स्थित पवित्र शुकतीर्थ के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। परम् वन्दनीय स्वामी कल्याणदेव द्वारा स्थापित श्री शुकदेव आश्रम में नौ दिनों तक निवास करते हुए श्रीमद्भागवत कथामृत का आस्वादन करने का दुर्लभ अवसर मिला। मैं धन्य हो गया। यह आश्रम अद्भुत है। इस स्थान पर श्री शुकदेव जी महाराज ने महाराज परीक्षित को श्रीमद्भागवत की कथा सुनाई थी, किन्तु आज इस आश्रम में अनवरत् श्रीमद्भागवत कथा की अमृत वर्षा होती रहती है। दस सभागार श्रीभागवत कथा की दृष्टि से निर्मित हैं, जिनमें दस कथाएं एक साथ चलती हैं।
यहां यज्ञशाला, गौशाला, संस्कृत विद्यालय, अन्नक्षेत्र आदि व्यवस्थित रीति से संचालित हैं। शिव मन्दिर, राम मन्दिर, समाधि मन्दिर तथा ऊपर अक्षय-वट के नीचे शुकदेव मन्दिर, हनुमान मन्दिर के साथ श्री श्याम सुन्दर का मन्दिर है, जहां मदन मोहन, भुवन मोहन बनकर स्थित हैं, जिनमें भक्त का मन अटककर रह जाता है। वटवृक्ष की परिसर भूमि दिव्यता से परिपूर्ण है। वहां बैठकर साधक अधिकारानुसार दिव्य अनुभूति एवं दर्शन प्राप्त कर सकता है। यह आश्रम पूर्व वर्णित भारतीय ऋषियों के आश्रमों की स्मृति को सजीव कर देता है प्रातःकाल ही यज्ञ-धूम का सौरभ सम्पूर्ण परिसर को सुवासित कर देता है। वेद मंत्रों की पवित्र ध्वनि, गीता पाठ, श्रीभागवत पाठ, मन्दिरों की पूजा आरती श्री महिम्नःस्त्रोत पाठ सभी मिलकर एक अपूर्व गौरवपूर्ण वातावरण का सृजन करते हैं, जिससे यहां आने वाले तथा निवास करने वाले जन-समुदाय का हृदय संस्कारित होकर जीवन के उत्तम एवं पवित्र उद्देश्य की ओर उन्मुख होता है। एक समता एवं सेवा का भाव मन में उदित होता है, जिससे मानवता विभूषित होती है।
यहां पुस्तकालय एवं वाचनालय बौद्धिक संस्कार देते हैं। ऐतिहासिक शुकतीर्थ संक्षिप्त परिचय हिन्दी, अंग्रेजी, गुजराती, मराठी, तमिल, तेलुगू एवं कन्नड़, शुकतीर्थ- संदेश-पत्रिका, तीन सदी के युगद्रष्टा स्वामी कल्याणदेव अभिनन्दन ग्रन्थ तथा अनेक सद्ग्रन्थों का प्रकाशन वैचारिक उत्कर्ष को बढ़ावा देते हैं। स्वास्थ्य समस्या के निदान हेतू औषधालय स्थापित है। इतने बड़े सभारम्भों का सुचारु संचालन जिन महापुरुष के तप एवं सर्वात्मभाव-जनित प्रभाव एवं सतत् जागरुकता से सम्पन्न हो रहा है, वे पूज्य सरस्वती जी सर्वथा अभिनन्दनीय हैं।